________________
कहे. कारणके पुनमनो क्षय थयेलो होवाथी चौदशमां तेनी वास्तवीक स्थिति छेज. ते होवानी युक्ति अमे कही गया छीए अने हजी आगल क्षीण अने वृद्धि तिथिर्नु साधारण लक्षण जणावीशुं त्यां कहीशु. पण तमे तो तुटेली चौदशने पुनममां तमारी बुद्धिकल्पनाथी आरोपीने आराधो छो ! केमके-पुनममा चौदशना भोगनी गंध सरखी नथी, छतां तमे तो ते होय तेम स्वीकार करीने चालो छो! तो तमारूंशु थशे ? तमारु आ आरोपज्ञान तो सर्वथा मिथ्याज्ञान रुप ले. वादी श्रीदेवमूरिजी 'श्रीप्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार'मा फरमावे छे के-जे वस्तु जेमा न होय तेमां ते वस्तुनुं ज्ञान करवुए आरोप छे. जेम छीपमा रूपुं न होवा छतां कोई रू' मानी ले तेम. जुट्ठी वस्तुनु नाम आरोप छे. वली पुनमना दिवसे कराता अनुष्ठानने तमे पुनमर्नु अनुष्ठान कहेशो के चतुर्दशीनुं अनुष्ठान कहेशो ? जो पुनमर्नु अनुष्ठान कहेशो तो पाक्षिक अनुष्ठाननो लोप थशे अने जो चौदशर्नु कहेशो तो चोक्खो मृषावाद थशे ! केमकेपुनमने चौदश कहेवी ए स्पष्ट मृषाभाषणज छे. अमे ज्यां पुनमना क्षये चौदशमां पुनम स्वीकारीए छीए, त्यां अमने आपत्ति नथी. कारणके 'त्यां' चौदश पुनम बन्ने समाप्त थाय छे. आ विषे वधु 'आगल' कहेवाशे. तमे जो एम पुछता होव के-शु चौदशना क्षये तेरसमां चौदशनुं ज्ञान मिथ्या नहिं कहेवाय ? तो अमे कहीए छीए के ना नहिं कहेवाय. जमीन उपर घडो अने वस्त्र बने पड्यां होय ते जोईने जेने एवं ज्ञान
पावाद
वो ए स्पष्ट
नमूना क्षये
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com