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कारणके अमें तमनेज पुछीये छीये के पूर्णिमा चउदश करतां अधिक छे के तेरस करतां अधिक छे १ चउदश तो सनातन कालथी पक्खिनी तिथि छे, अने भगवान कालिकसरिथी ते चौमासीनी तिथि पण छे. तेनाथी पुनम अधिक आराध्य छ एमतो तमाराथी बोली शकाशे नहिं ! त्यारे तेरसथी अधिक छे एम तमारे कहेवु पड़शे. तो एज प्रमाणे नोम पण सातम करतां कल्याणक तरीके अधिक आराध्य छे. आथी पुनम अने नोम मां सरखो प्रसंग आवी पडे, ए देखीतुंज छे. आराध्यरूपे तो पुनम अने बीजी कल्याणक तिथिओमां पण समानपणुं छे ते स्वयं विचारी जदूं जोइये. वलि अमे पुछीये छीये के तुटेली आठमवाली सातम चतुष्प-मां गणाय के नहिं ? जो गणी शकाय, तो तुटेली च उदशवाली तेरस पण चतुष्पवर्वी अंतर्गत केम न गणाय ? जो एम कहो के, न गणाय तो तमनेज अनिष्ट प्रसंग के केमके-'पर्व'तिथि सिवायनी तिथिमां तमे पौषध स्वीकारता नथी, छतां तमारे माटे तो ते दिवसे स्वीकारेलो गणाशे ! वली चतुष्पवर्वी पण आराध्य छतांये वधी एकसरखी के तेवु नथी, तो पछी चउदशना क्षये पुनमज पाक्षिकपर्व तरीके शा माटे अंगीकार करवी जोईये ? पाक्षिक पर्वनी अपेक्षाए जेवी त्रयो. दशी छे तेवी पूर्णिमा छे. आ प्रमाणे जो न मानिए तो पाक्षिककृत्यनी व्यवस्था नहीं रहे. जो तमे चौदशना क्षये तेरसना बदले पुनमज स्वीकार करवाना मतवाला छो, तो पर्युषणानी चोथना क्षये पांचमनो स्वीकार करीने तमारे व्याकुल थर्बु पडशे;
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