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करता है) यहां तुझे शंकाको स्थान नहीं है, तेरी दलील युक्तिरहित होनेसे.
की०-अच्छा, अब अनुवाद पढ़िये.
इन्द्र०-(पर्व० प्र० पृ. २६ खोलकर) "जो के आगमोमां प्रण चौमासी संबंधि पुनमो अने अमावास्याओ पुण्यतिथिरूपे महाकल्याणकपणे आराध्य कहेली प्रसिद्ध छे, तोपण श्रावकना पौषध व्रतने आश्रयीनेज सामान्यपणे ग्रहण करेली क्याए जोवामां आवती नथी. एज कारणथी तेज अपेक्षा राखीने 'युक्तियो वतावाय छे, ते आ प्रमाणे-पूर्णिमा आराध्य छे, ए भ्रान्तिथी पण चउदशर्नु कृत्य पूर्णिमाना दिने करवु व्याजबी नथी. आ वातने गाथाना उत्तरार्धमां दृष्टांत आपी "शास्त्रकार' मजबूत करे छे, जेम क्षीण अष्टमीन कार्य 'नवमी' कल्याणक तरीके आराध्य होवा छतां नोमना दिवसे करवु प्रमाणभूत नथी तेम. परगच्छिने पण आ वस्तु मान्य छे. 'अहिं' एम नहिं कहेवं जोइये के नवमी कल्याणक तिथि होवा छतां चतुष्प-रूपे आराध्य नथी, माटे नोमनी साथे पूर्णिमाने सरखी कां बतावो छो?
१ कलिकालसर्वज्ञ भगवान श्रीहेमचंद्राचार्यजी महाराज योग- . शासमें साफ २ फरमाते है कि-अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमा. वास्या, ये चारोही पर्वतिथि मिलके चतुष्पर्वी है. और इन चारोहीमें पौषध करनाही चाहिये, तब जं. वि. पर्णिमा और अमावास्याको चतुपर्वी मेंसेही निकालकर पौषध जैसी उत्तमोत्तम धर्मक्रियाको देशनिकाल देते है ! यहतो कलियुगका ही प्रभाव है.
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