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होता है (पर्व तिथिपनेमें भिन्नता होते हुए भी) आराधनामें तो कल्याणक तिथि और पूर्णिमा, दोनोकी समानता है, ऐसा स्वयं ही विचारने योग्य है.
"किं च पर्युषणाचतुर्थ्याःक्षये पंचमीस्वीकारप्रसंगेन त्वं व्याकुलोभविष्यसीत्यपि क्षेयं!" अर्थ:-और भी बात यह है कि-पर्युषणा संबंधी चौथ के क्षयमें पंचमीको स्वीकारनेका प्रसंग होनेसे तूं व्याकुल होगा, यहभी जान लेना! ___ वकी०-देखा साहब । शास्त्रकारतो वादिको पंचमीके प्रसंगकी आपत्ति देकर उस पंचमीको पर्वतिथिपने में कायम (विद्यमान) रखते है. और आपके गुरुजी तो लिखते है कि"वह पंचमीतो मृतक-माता जैसी ही है !" यह क्या उनकी आगमप्रज्ञता है ?
इन्द्र०-बेशक. इसी ग्रंथके कर्ता भी कल्पकिरणावलीमें पंचमीको मृतक माता सदृश कहते है. - वकी०-आप जरा पक्षपातके चश्में उतारकर विचारीये कि शास्त्रकारने वहां भाद्र० शुक्लापंचमीको संवत्सरीके लिये मृतक-माता जैसी गिनी है, कि-पंचमी पर्वके लिये मृतक माता जैसी गिनी है ? जं० वि० के मतानुसार यदि पंचमी, पर्वपनमेंसे ही गई हुई है, ऐसी ही शास्त्रकारकी मान्यता होती तो वे ही ग्रन्थकार अपने तत्वतरंगिणि ग्रन्थमें वादिको पंचमीकी आपत्ति देते क्या ?
इन्द्र०-यह बात मेरी समझमें नहीं आई.
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