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हेतुको दिखाने की शास्त्रकारको आवश्यकता ही क्या थी ? और यहांतो हेतुमें दोनो ही तिथियों की विद्यमानता दिखाई गई है ? और साध्य में तो एक ही को दिखलाया हैं, सो वहभी कैसे दिखलाते ? इससे सिद्ध होता है कि ग्रंथकार सम्मिलित तिथिको नहीं मानतें है. और इसीसे तो "स्थिति है" ऐसा नहीं कहते हुए वास्तविक स्थिति है ऐसाही कहते है ! अर्थात् वास्तविक ऐसा कहने से 'क्षय ऐसी पूर्णिमा, चतुर्दशी के दिन सूर्योदयसे ही पूर्णिमा हो जाती है. यहांपरभी शास्त्रकार साफ २ ऐसा ही फरमाते है.
इन्द्र० - आपकी युक्ति कुछ ठीक तो लगती है, परंतु दिमागमें जँचती नहीं है ! इसपरतो खूब ही मनन करना पड़ेगा, किंतु शास्त्र के 'विचारचातुरी' वाक्य के बाद आपने जो इसी वाक्यपर इतना विवेचन किया है, वह मूलमें तो नहीं है, और आप इसे कहां से ले आये ? इसको भी समझने की मुझे जिज्ञासा है.
वकी० - "विचारचातुरी" यह व्यंग वचन है, और इस व्यंगता से उपरोक्त होई हुई सब ही बातका भावार्थ लिया जाता है, अगर ऐसा जो नहीं होता तो शास्त्रकार वहां पर "तयोरपि " अगर " द्वयोरपि" ऐसाही प्रयोग लेते. अच्छा, आगेको पढ़िये.
इन्द्र०- ( पढ़ते है ) भवता तु त्रुटितचतुर्दशी पूर्णिमायां बुद्धयाssरोप्याऽऽराध्यते, तस्यां तद्भोगमंघाभावेऽपि तत्वेन स्वीक्रियमाणत्वात्, आरोपस्तु मिथ्याज्ञानं यदुक्तं प्रमाणनयतच्च लोकालंकारे श्रीदेवाचार्यपादेः अतस्मिंस्तदध्यवसायः समा
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