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विशेषकरणाभिग्रहीभवति, स च द्विधा-निरंतरतपश्चिकीर्षुः सान्तरतपश्चिकीर्षुश्च, तत्राद्य एकस्मिन् दिने द्वयोरपि कल्याणकतिथ्योर्विद्यमानत्वेन तदराधकोपि सन् अनंतरोत्तरदिनमादायैव तपापुरको भवति, नान्यथा, यथा पूर्णिमा पाते पाक्षिकचातु
र्मासिकषष्ठतपोभिग्रहीति, द्वितीयस्तु भविष्यदर्षतत्कल्याणकतिथियुक्तदिनमादायैवेति नात्र शंकावकाश इति, युक्तिरिक्तत्वात् , न च खसूचित्वमेव शंकावरनाशौषधीति गाथार्थः"
अर्थ:-कहते है कि-कल्याणककी आराधना करनेवाला प्रायातपविशेष (एकाशन आचाम्लादि) करने के अभिग्रहवाला होता है. वहभी दो तरहका है, एक निरंतर तप करनेकी इच्छा. वाला, दूसरा सान्तर तप करने की इच्छावाला. उसमें पहिला तो साथमें आइ हुई दो कल्याणक तिथिके वक्त उत्तरकल्याणकतिथि क्षय होवे जब दोनो तिथिकी पूर्वकल्याणकतिथिमें विद्यमानता होनेसे उन दोनो तिथियोंकी आराधना करनेवाला होने परभी अंतररहित उत्तर दिनको ग्रहण करके तपकी पूर्तिवाला होता है.
वकी०-(इन्द्र० को रोककर) देखिये साहब ! यहां परभी तपसे प्रतिबद्ध एसी कल्याणकतिथिमेंमी उत्तरकल्याणकतिथिका क्षय हो तब पूर्वकल्याणक तिथिमें दोनो तिथियों का होना दि. खला करकेभी एक दिनके तपसे दोनों की पूर्ति तो नहीं ही दिखाते है. अर्थात् जहां कल्याणक तिथिके तपकोभी अंतररहित उत्तर दिनको लेकर पूरा करने के लिये शास्त्रकार साफ २
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