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फरमाते है, वहां आपके पूज्यश्री तो पौषधादि अनुष्ठान से प्रतिबद्ध और नियमित ऐसी दो पर्वतिथियोंकी आराधना एक ही दिनमें होजानेका शास्त्र व परंपरा से विरुद्ध बोलते हुए, व आचरण करते हुए तनिक भी नहीं हीचकीचाते है.
यदि दो तीन कल्याणक तिथियें साथमें हो और उसमें एक तिथिका क्षय हो तब कैसे करना ? इस प्रश्नका निकालभी शास्त्रकार करदेतें हैं कि जैसे १-२-३ इन तीनों दिनों में कल्याणक हो और तृतीयाका क्षय हो तब प्रतिपदा में द्वितीयाका भोग, और द्वितीयामें द्वितीया और तृतीया दोनोंकि समाप्ति होने से क्षये पूर्वा० नीयम के अनुसार अमावास्याको एकम एकमको बीज और बीजको तीज बनाके तीनो कल्याणकका तिथि प्रतिबद्ध तप उनतिनों तिथियों में करे. अमावास्या को भी पर्व तिथि तरीके आराधता होवे तो अमावास्याको आये हुवे एकमके कल्याणकका तप अनन्तर ऐमा उत्तरदिन चतुर्थीको कर लेवे. क्षये पूर्वाका नियम भी कल्याणक तिथियोंमें तीन चार कल्याणक तक लगता है. कारण कल्याणक तो दो तीन चार आदि उपरा उपरी अनेक आते है. ऐसे एक तिथिमें भी कितने ही साथ आते है. और शास्त्रकारके कथनानुसार कल्याणककी आराधना बहोत करके तप विशेषसे ही होती है, पर्वतिथियें तो महिने में बारा ही आती है, और उनकी आराधना पौषधादि सर्वानुष्ठान से ही होती है, सबब प्रसिद्ध कल्याणक तिथियोंके लिये भींतीये पंचांग में ऐसा कम है कि
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