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रही हुई चतुर्दशीका क्षय करके उसी ( चतुर्दशी ) को पूर्णिमा बनाते हो तो जैसे हमारे यहां पूर्णिमामे चतुर्दशीका नाम नहीं रहता है, वैसेही आपके वहां भी बनावटी. ( चतुदर्शीके दिन ) पूर्णिमाके दिन चतुर्दशीका नाम नहीं रहता है. उसका क्या ? और आपको भी पूर्णिमामें चतुर्दशीका नाम नही रहा हुआ होनेसे चतुर्दशीकी आराधनाका तो नाशही हुआ) तो अहोतेरी विचार चातुर्यता! जिसकरके चतुर्दशीके अंदर दोनोकी विद्यमानता होनेसे उसकी याने क्षीणपूर्णिमाकी भी (त्रयोदशीके दिन चतुर्दशी और चतुर्दशीके दिन पूर्णिमा करनेसे) आराधना होती है (अर्थात् आपके वहां तो चतुर्दशीके क्षयमें चतुर्दशीकी आराधना नष्ट ही होती है किंतु हमारे यहांतो पूर्णिमाके मुताबिक चतुर्दशी की आराधाना भी होती है.) ऐसा जानते हुएभी (हमे) फीर प्रेरणा करता है. ?
"न च तत्रा रोपिता सती पूर्णिमाऽऽराध्यते, यतस्त्रुटितत्वेन चतुर्दश्यां पौर्णिमास्या वास्तव्येव स्थितिः, युक्तिस्तु तत्रोक्ता वक्ष्यते च क्षीणतिथिवृद्धितिथिसाधारणलक्षणावसरे इति" । अर्थ-न कि चतुर्दशीके अंदर आरोपित की हुई पूर्णिमा आराधनेमें आती है ! क्योंकि पूर्णिमाका क्षय होनेसे चतुर्दशी के अंदर पूर्णिमाकी वास्तविक ही स्थिति है. इस संबंधकी युक्ति पहले (चोथी गाथाकी व्याख्यामें) हम कह गये है और आगे__ १ पाठक देखनाहो शासकारजो पहले कहगये है कि चतुर्दशी ही होती है न कि त्रयोदशी उसी ही चतुर्दशीका हवाला यहां परभी देते है.
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