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अर्थ:- औरमी दूसरा तुझे पूछते हैं कि क्षीण अष्टमी युक्ता सप्तमी, चतुष्पवके अंदर है या नहीं ? यदि चतुष्पवके अंदर ( चतुष्परूप ) है ऐसा कहा जाय तो क्षीणचतुर्दशी युक्ता त्रयोदशी भी चतुष्पवके अंदर ( चतुष्पवरुप ) क्यो नहीं ? यदि क्षीणाष्टमीयुक्ता सप्तमीके अंदर भी नहीं है, एसा कहा जाय तो तुम हीको अनिष्ट है ! सबब (तुमलोगोंने अपर्वतिथि में पौधषका स्वकार नहीं किया हुआ + होने से 1 ) " किंच चतुष्प अप्येकरूपत्वेनाराध्यत्वाभावात् कथं पंचदशी, पाक्षिकत्वेनाङ्गीकार्या पाक्षिकापेक्षया यथा त्रयोदशी तथा पंचदश्यपि, अन्यथा पाक्षिक कृत्यव्यवस्था भंग प्रसंगः, आराध्यत्वे च पंचदशी कल्याणकतिथ्योरपि अविशेष इति स्वयमेव विचारणीयम्'
अर्थ :- और दुसरी बात यह भी है कि चतुष्पवकी चारों ही तिथियोंका भी आराध्यत्व अलाहिदा अलाहिदा होने से पूर्णिमाको पाक्षिक की तौरपर कैसे ली जाय ? 'क्योंकि' - चतुदेशीकी अपेक्षा से जैसी त्रयोदशी है, वैसीही पूर्णिमा है ! यदि ऐसा न होतो पाक्षिक कृत्यकी व्यवस्थाके भंगका प्रसंग प्राप्त
+ खेदका विषय है कि पर्वतिथियोंकों भी क्षय मानकर पर्वतिथियों को ही उड़ा देनेकी धुन में जं० वि० को यह बातभी ख्याल में नहीं आई कि श्री तस्वतरंगिणीकारतो पर्वतिथिके क्षयमें पूर्व की अपईतिथिका क्षय करनेको फरमाते है, वैसेही अष्टमी आदिके क्षयमें सप्तमी आदिको भी चतुष्पही कहनेका फरमाते है. जब अपर्वतिथि चतुष्पवरूपा ही हो गई तब तो सिद्ध हो ही चुका कि पूर्व में जो अपर्व तिथि है उसीका क्षय ही हुवा.
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