________________
- वकी०-क्या आप अपने वीरशासनमें बता सकते है, कि पंचमीका क्षयथा ?
इन्द्र०-यहतो साबीतही है कि एक सागरानन्दसूरिजीको छोड़कर समस्तजैनसमाजने शुक्रवारकोही संवत्सरीपर्व मनायाथा.
. वकी०-इसमें तो आप भूलतें है श्रीसागरानन्दसूरीश्वरजी महाराज एकीले नहीं बल्कि उनका समस्त समुदाय और उनके अलावा दूसरेभी कई एक मुनिमाहाराजों और कितनेही गावोंके श्रावक श्राविकाओंने भी गुरूवारको संवत्सरी पर्व मनायाथा.
इन्द्र०-पुरत छाणी बीलीमोरा दमण ये (इन मिन और साढ़े तीन) जिसमें आप कितनेही गाव गिनाने लग गये उसी तरह दर्शनविजयजी वगैरह तीन साधु जिसमें आप कई साधु.
ओंकी गिनती गिनने लग गये वकीलोंका तो यह पेशाही है कि बातका बतगड़ खड़ा करदें यदि ऐसा न करें तो महन्ताना कैसे पके,
वकी०-'सच्चासो मेरा' यही मान्यता हमारी है न कि 'मेरा सो सच्चा' और आप जो यह कहते है कि समस्त साधु समुदायने पंचमीको क्षयमान करही संवत्सरी पर्व शुक्रवारको मनायाथा तो क्या अपने गुरूदेव व उनकी मान्यतावालोंको छोड़कर अन्य मुनि माहाराजोंसें यह मंजूर करवा दोगे कि उन्होने पंचमीको क्षय होना मानाथा.
इन्द्र०-उस वक्ततो सबहीने ऐसाही मानाथा, अब वे कबूल करें या न करें यह कोई मेरे हाथकी बात थोड़ेही है.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com