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वृद्धि ०- ( इन्द्र० से ) पनकी बात आने से पन्नालालजीकी जवान भी खुल पड़ी है.
पद्मा० - आप चाहे जैसा समझ लीजिये.
गुला०- ( वकील सा०से) अच्छा. आपतो अपनी बात ही चलने दीजिये. ( वकील साहब तच्चतरंगिणी लेकर शुरूआत करते है ! तश्वतरंगिणी पृष्ट ३ निकालकर इन्द्र को देते हुवे.) वकी० - मैं पहली तीन गाथाओकी बाततो हाल में बंदही रखता हूं आप यह चोथी गाथा पढ़ीये.
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इन्द्र० - बहुत अच्छा. ( पढते है. ) तिहीवार पुत्रवतिहि, अहिआए उत्तरा य गहि अन्वा । हीणपि पक्खियं पुण न पमाणं पुष्णिमा दिवसे ॥४॥ वकी० - इसका अर्थ भी तो कीजिये.
इन्द्र० - तिथिका क्षय हो तब पूर्व तिथि और वृद्धि हो तब उत्तर (दूसरी ) तिथि ग्रहण करना क्षय होनेवाली चौदश, पुनमके दिन प्रमाण नहीं है. ( इतने में )
ऋषभचंदजी ०- देखिये ! देखिये !! साहब ! यह तत्रतरंगिणीसें ही साबीत हुवा कि चौदशका क्षय होता हैं.
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वकी० - आप उतावल न कीजिये. ग्रंथ कारतो लौकिक पंचांगकी अपेक्षा से बोलतें है, नकि जैन मंतव्य से (इंद्र० से ) अच्छा, अब आप इसकी टीका वांचते जाईये और अर्थ भी कहते जाईये.
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