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काणा कहना, लंगड़ेको लंगड़ा कहना यदि कोई व्यभिचारी हो तो उसे व्यभीचारी कहना यही सम्यग्दृष्टिका धर्म है. और अंधेको अंधा, काणेको काणा, लंगड़ेको लंगडा और व्यभिचारी को व्यभीचारी न कहे तो मिथ्यादृष्टि ! क्यों साहब ! पंनालालजी! श्रीवुवि० की धन्यबुद्धिसें ऐसाही होता हैं न? (पंडितजीसें ) आपके शास्त्रमेंभी क्या यही बात दर्ज है, कि अंधेको अंधा कहकर पुकारना ?
पंडि०-साहब! हमारे शास्त्रमेंतो ऐसा नहीं है.
वकी०-पमालालजी साहब ! आपसे मुझे दर्यापित करना है कि-इस चंडां शुं चंडको आप सत्य मानते हो या झूठ?
पन्ना०-हमतो इसे सत्य मानते है. __ वकी०-अच्छा तो इसमें बतलाई हुई चैत्रमासादिकोंकी वृद्धि सत्य है न? .
पत्रा०-हां सत्यही है.
वकी०-जब जैनशास्त्रकारोंका यह फरमाना है कि आषाढ और पौष महिनोंके सिवाय अन्य कोईभी मास बढ़ता नहीं है तबतो यह बात असत्यही रही न?
पन्ना०-नहीं एसा नहीं जैनपंचांग की अविद्यमानता होनेसे अन्यपंचांगकी अपेक्षासें यह बात सत्य है.
वकी०-अच्छा तव जैन शास्त्रानुसार तो आषाढ़ और पौष मासके सिवाय अन्य महिनाओंकी वृद्धि नहीं होते हुवे अन्य महिनोंकीभी वृद्धि मानने व बोलनेवाले जंबुवि० को सम्यग्
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