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वह समान है या इसमें व उसमें कुच्छ अन्तर है ?
इन्द्र०-यहतो लेखक और वक्ताओंकी प्रणाली होती है कि पूर्वापरका संबंध मिलाने के लिये कुछ पीष्टपेषणभी करते है !
की०-ऐसेतो जंबुवि० ने जितना मनमें आया उतना ही मोटे टाईपोंमें शास्त्र विरुद्ध बहुत पीस डाला है। लेकिन उस पुस्तकमें सूक्ष्म हरफोंका लिखान है वह तो जंबुवि० ने ग्रंथका. रका ही बतलाया है ऐसा दिखलाकर उसमें न्यूनाधिकताकी है !
___ गुला०-( वकीलसा० से ) यदि जंबुवि० सच्चे होते तो टीकाको उपर लिखकर नीचे अर्थ लिखते. टीका नहीं लिखी इससेभी सावीत होता है कि नियत साफ नहीं है.
वकी०-यदि ग्रंथ गौरवके भयसें टीका नहीं लिखी ऐसा बचाव करतें है तो कुछ हर्ज नहीं लेकिन टीकाके नामसे इधर तिधरका लिख देना यहतो अनुचित ही है.
पंना०-(वकी० सा० से) बड़े अक्षरों में उपाध्यायजीने शास्त्र विरुद्ध क्या लिखा है? कुछ दिखलाओगे भी सही या मनमें आया वह बोलदिया ?
वकी०-मनमें कभी ऐसा वैसा आता ही नहीं कि जो ऐसा वैसा बोल दिया जाया. और जैसा होवे वैसा बोलना यहतो जंवुवि० सम्यग्दृष्टिका धर्म मनाते हैं, आपको खात्री न होतो दिखिये पर्वतिथिप्रकाश पृ. १९ पंक्ति नौवींसेंः उन्होंने साफ लीखा है कि "जे वस्तु जेवी होय तेने तेवी कहवी तेतो सम्यगदृष्टिनो खास धर्म छ" अबतो अंधेको अंधा कहना, काणेको
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