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कल्पित वाक्य जंबुवि० ने टीकाकारके नामसे ही लिखदिया ? कैसा जुल्म ? अच्छा आगेको पढ़िये.
इन्द्र०-(पढ़ने है) एतच्च त्वयाप्यङ्गीकृतमेव अन्यथा क्षीणाष्टमीकृत्यं सप्तम्यां क्रियमाणमष्टमीकृत्यव्यपदेशं न लभेत, न चेष्टापत्तिः अर्थ-यहतो तेने भी ( अर्थात् क्षीणचतुर्दशीके वख्त त्रयोदशीको चतुर्दशीही कहना यह बाततो तूने भी कबूल की है.) 'नहीं तो क्षीणाष्टमीके वख्त' सप्तमीमें किया जाता हुआ अष्टमीका कृत्य (कार्य) अष्टमी कृत्य के व्यपदेश ( नाम) को प्राप्त नहीं होवे. यहां तूं ऐसा कहे कि-" हमें तो इष्टमिला" अर्थात् हमे अष्टमीके व्यपदेशसे कुछ मतलब नहीं हमें तो कार्यसे मतलब है कार्य हो चुका चाहे तो व्यपदेश हो या न हो' ऐसा नहीं चलेगा.
वकी०-(इन्द्रमलजीको रोककर) देखा साहब ! शास्त्रकार कहते है कि सातममें किया जाता हुआ अष्टमीका कार्य (आराधना) अष्टमीके नामकोभी प्राप्त नहीं कर सकता है. और आप तो कहते है कि 'आज सातममें आठमकी आराधना की है। इस वाक्यसें शास्त्रकार महाराजा आपकी मानी हुई 'सप्तमी अष्टमी शरीक है, त्रयोदशी चतुर्दशी शरीक है, चतुर्दशी पूर्णिमा शरीक है.' इस मान्यताको तो जड़ामूलसें ही उखाड़ देते है. अच्छा. आगेको पढ़िये !
इन्द्र०-(पढ़ते है) "आबालगोपालप्रतीतमेव अद्याष्टम्या पौषधोऽसाकमिति, एतद्वचनवक्तपुरूषानुष्ठीयमानानुष्ठानापला.
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