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चोथी गाथाका अर्थ है.
वकी० - अब आप मुकाबला कीजिये. इन्द्र०- ( पर्व ० प्र० पृ. २५ खोलकर " आ वस्तु तें पण अङ्गीकार करेली छे, जो तेम न होय तो आठमना क्षये सातमना दिवसे 'अमे आजे आठमनो पौषध आदि करेलो छे' एम ताराथी केवी रीते कही शकाशे ? तुं आठमनुं कार्य सातमने दिवसे करे छे, एटले 'आटम क्षय पामेली होवाथी तेनुं कार्य पण क्षय पामी ग' एवं ताराथी हरगीज कही शकाशे नहि. मुंझाइने जो तुं एम केवा मांगे के - 'लोक व्यवहारना भंगनो' प्रसंग न आवे ते माटे क्षीणाष्टमीनुं कार्य सातमे करीए तेमां कांइ दोष नथी.' तो अमारुं तमने एज कहेतुं क्रे के - 'बहुसाएं. एज भय राखीने क्षीण चतुर्दशीनु कार्य पण तमे तेरसेज करो, लोभीती तो तमारे माटे बन्नेय ठेकाणे. सरखी छे.'
वकी० - कहीये ! अब आपहि देखिये कि आपके किये हुवे अर्थ में और आपके पूज्यश्री के किये हुवे अर्थ में कितना अंतर है ? और भी न चेष्टापत्तिः,' 'आबाल गोपाल प्रतितं, ' 'अहो पांडित्यातिरेक स्तव' और 'पितामें कुमार ब्रह्मचारी' वगेरा कितने ही वाक्यों के अर्थ को तो जंबुवि० ने न मालूम कहां ही गायब कर दीया हैं ! ओर 'मुंझाइने हरगीज करी शकाशे नहीं' वगेरा कीतनेहीं वाक्यतो जंबुवि०नं अपने घर केही रखदिये है! (पंडितजी की तर्फ देखकर) देखा सहाब ? अपने झूठे मताग्रह के लीये जंबुवि० ने कितना उलट पुलट करदिया
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