________________
देखने में आती है वे श्रावकोंके पौषधको लेकरही कही गई है। जंबुवि० की प्रतिका 'न'कार-लेनेसे तो सबही पुनमोंके पौषधकी आराधनाका लोप हो जाता है कारण कि आगमों में तीन पूर्णिमाएं दिखलाई वेतो विशेष है सर्व सामान्य नहीं है। सामान्य और विशेषको समझे विनाही आपके पूज्यजीने लिख मारा है यहांतो शास्त्रकारको सबही पूर्णिमाएं आराधनामें लेनी है फीर आपकी मान्यतानुसार तो शास्त्रकारके इस अभिप्रायका ध्वंस होता है ! इसके प्रमाण में भी आप देखिये.' (प्रश्नोतर समुच्चय नामक ग्रंथ, धूलचंदसे मंगवाकर पृ. ५ पंक्ति ४ निकालकर) " तथा पूर्णिमा तिस्र एव संगीयते सर्वा अपि पर्वतयाङ्गी कार्याः ? इति श्राद्धा भूयो भूयः पृच्छन्ति इति प्रश्नः. उतरं'छण्हं तिहीण मज्झमि का तिही अञ्जवासरे' इत्याद्यागमानुः सारेण अविच्छिन्न वृद्धपरंपरया च सर्वा अपि पूर्णिमाः पर्वत्वेन मान्या एवेति. अर्थ:-शिष्य, गुरु महाराजसे प्रश्न करते है कि पर्वकी तौरपर तीन पूर्णिमाएं या सबही पूर्णिमाएं लेनी चाहिये? इस प्रकार हरवक्त श्रावक लोग प्रश्न करते है. इसके जवाब में आचार्य महाराज फरमाते है कि-(श्रावक, मुबह प्रतिक्रमणके वक्त) आज छहो तिथियों में से कोनसी तिथि है ? ऐसे आगमके वचन अनुसार, और कभीभी जिसका नाश नहीं हुवा है ऐसी ( अविच्छिन्न) वृद्ध परंपरासें सबही पूर्णिमा पर्वपने मान्य की हुई है. 'एमा विचार करे.' ( इन्द्रमलजीसें) अब आपही कहिये !! कि जंबुवि० की मान्यताका नकार लेनेसे आगममें
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com