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दृष्टि कैसे समझना और कहना? क्योंकि वे खुद ही लिखते है कि " जे वस्तु जेवी होय तेने तेवी कहेवी ते तो सम्यग्दृष्टिनो खाम धर्म "
पंना०-आपका कहना ठीक है, लेकिन लौकिक व्यवहार से चैत्रादि मासोंकी वृद्धि मानने में कोई भी हर्ज नहीं है.
वकी-जब पूर्वाचार्यमाहाराज, लौकिक पंचांगमें जिस पर्व तिथिकी वृद्धि हो तब उससे पूर्व तिथिकि वृद्धि मानना
और क्षय हो तब उससे पूर्व तिथिका क्षय मनना ऐसा फरमाते है, तो फिर उसी बातको मानने में हर्ज है क्या? कि जिससे श्रीजंबुवि० ने “जे वस्तु जेबी" की बातको लाकर रखदी है.
वृद्धि०-यहतो जंबुशास्त्रका पाठ है. लेकिन जैनशास्त्रोका फरमान तो ऐसा है कि काणेको काणा, नपुंसकको नपुंसक चोरको चोर आदि कहना ही नहीं ! देखिये श्री दशवकालीक अध्ययन सातवां, और उदेसा दूसरा.
वकी०-पन्नालालजी साहब ! जंबुबि० की सच्चाइ(१) का एक नमुनातो आपने देखलिया है, औरभी दसरा दिखाउं क्या!
पन्ना०-(मुँहबिगाडकर ) जाने देओजी! आपके साथ बोलनाभी पाप है। आप अपने जो करते हो वह किये जाईये.
वकी-बहुत अच्छा. (इंद्रमलजीसे) अब आप आगे पढ़ीये.
इन्द्र०-( पर्वतिथिप्रकाश पृ. २२ निकालकर पढ़ते है. ) "आ नियमने कबूल राखत्रा छतां पण जे कोई एम माने छ के अष्टम्यादि तिथिनो क्षय होय त्यारे तो सप्तम्यादि पूर्वतिथि
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