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पंडि०-इन गाथाओंका अर्थ ठीक तौरसे कहो.
वकी०-इसका भावार्थ यह है कि-जब सूर्योदयवाली चौमासी चतुर्दशी आदि तिथियें न मिले तब क्या करना ? उसके लिये कहते है कि-यदि किसी प्रकार सूर्योदय वाली चौमासी, चतुर्दशी वगैरह तिथिये न मिले, तब दूसरी तिथिसें विद्ध अर्थात् क्षीणचतुर्दशीसे मिली हुई जो तिथि वह चतुर्दशी बनती है. ऐसी चतुर्दशी भी चतुर्दशी होती है, लेकिन पूर्वके नामवाली (१३) तो होती ही नहीं है.
इन्द्र०-पूर्वके नामवाली तो होती ही नहीं है ऐसा कह. करतो आपने यह निश्चित करदिया कि चतुर्दशीही होती है और दूसरी तरफ आप बोलतें है कि चतुर्दशीभी होती है इस 'भी' शब्दसें तो सावीत हुवा कि उसरोज त्रयोदशी है.
वकी०-'चतुर्दशी भी' यह शब्द नहीं, किंतु 'त्रयोदशी भी' ऐसा कहो; और इस 'भी' शब्दसें जो त्रयोदशी कहते है वह प्रायश्चित्तादि विधितो नहींही समझना. क्योंकि उसमेंतो "नहु पुवतविद्धा-तद्विद्धा पूर्वानव"इस वाक्यसें त्रयोदशीतो नहीं ही होती है, ऐसा ही कहते है. अब रहा 'अपि' शब्द उससे तो मुहूर्तादि विशेष कारणोंमें त्रयोदशीभी गिनी जाती है, ऐसा फरमाते है. इस अपि शब्दका तो वादीमी यही अर्थ मान्यकर शंका करता है आप आगे पढ़ीये. ___इन्द्र०-देखिये ! उपाध्यायजी जंबुवि० माहाराजके पास जो हस्तलिखित प्रति है, उसमें इन गाथाओंकी जो टीका है
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