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मग-अजी वाह ! तुम वापिस क्यों चले आये ? वृद्धि०-पंडितजीको लेकर वापिस आया हुं, न कि-यौही. मग०-वाह यहभी अजीब दिल्लगी!
वृद्धि०-(द्वारकी ओर हाथ करके ) देखिये पंडितजी सिर्फ नहीं आये है लेकिन साथमें कुंवरसाहबकोभी लाये है!
गुला०-आ....हा....हा ! (कुंवरसा० से) आजतो आपने बड़ी कृपा की? - सौभा०-इसमें कृपा काहेकी है ? आप लोगोंकी खबर जो लेनीथी.
मग०-बस बस साहब ! साफही क्यो नहीं कह देते है कि-बहनोईजी साहबकी खबर लेने आये हो ?
सोभा०-यौंही समझ लीजियेगा.
गुला०-(पंडितजीसे)आपतो ज्ञानीकी तरह 'आपकी यहां याद हो रही है' यह जानकर अचानक ही आ उपस्थित हुए लगते हो!
पंडि०-क्यों क्या बात है ?
गुला०-यहां वादविवाद जो जारी है, उसमें आपको मध्यस्थ बनाया गया है.
पंडि०-कैसा वाद विवाद और क्या बात ? मैंतो कुछ भी नहीं जानता.
गुला०-वकील साहब ! और इन्द्रमलजी साहब ! आपको तमाम वकफियत दे देवेंगें.
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