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________________ (४२) मग-अजी वाह ! तुम वापिस क्यों चले आये ? वृद्धि०-पंडितजीको लेकर वापिस आया हुं, न कि-यौही. मग०-वाह यहभी अजीब दिल्लगी! वृद्धि०-(द्वारकी ओर हाथ करके ) देखिये पंडितजी सिर्फ नहीं आये है लेकिन साथमें कुंवरसाहबकोभी लाये है! गुला०-आ....हा....हा ! (कुंवरसा० से) आजतो आपने बड़ी कृपा की? - सौभा०-इसमें कृपा काहेकी है ? आप लोगोंकी खबर जो लेनीथी. मग०-बस बस साहब ! साफही क्यो नहीं कह देते है कि-बहनोईजी साहबकी खबर लेने आये हो ? सोभा०-यौंही समझ लीजियेगा. गुला०-(पंडितजीसे)आपतो ज्ञानीकी तरह 'आपकी यहां याद हो रही है' यह जानकर अचानक ही आ उपस्थित हुए लगते हो! पंडि०-क्यों क्या बात है ? गुला०-यहां वादविवाद जो जारी है, उसमें आपको मध्यस्थ बनाया गया है. पंडि०-कैसा वाद विवाद और क्या बात ? मैंतो कुछ भी नहीं जानता. गुला०-वकील साहब ! और इन्द्रमलजी साहब ! आपको तमाम वकफियत दे देवेंगें. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034996
Book TitleParvtithi Prakash Timir Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrailokya
PublisherMotichand Dipchand Thania
Publication Year1943
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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