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(४१) इन्द्र०-सवही अध्याहार लिया जाता है. श्रीमान् उपाध्यायजीमाहाराज, कि जो व्याकरण शास्त्रके निष्णात है और उन्होने ही अध्याहार लिया है बस यह प्रमाणभी मौजुद है. . वकी०-यह कोई पुरावा (प्रमाण) नहीं है। जिसको जंबुवि०ने अपनी तरफसे बढ़ा दिया है ऐसा हम कहते है उसीको आप पुरावे में पेश करते हो यह युक्ति संगत है ? (इस बीचमें)
सितारामजी०-देखो भाई ! हमतो वैष्णव है. तुमारी बातें तो हमारी समझमें नहीं आती लेकिन जो आपलोगोंको उचित मालूम हो तो मेरी राय यह है कि-अपने साथ बरातमें पंडित नंदकिशोरजी आये है उन्हे इस चर्चाका निर्णय देनेको पंच बनाये जाय तो अच्छा होगा; क्योंकि प्रत्येक व्यक्तिका स्वाभाविक तौरपर अपनी बातकी पुष्टि करना स्वाभाविक है. दो व्यक्तिके वादविवादका सत्यासत्य निर्णय तीसराही ठीक तौर पर करसकता है. ( इतना कह सबकी ओर देखते है. )
सबही० -एक साथ, 'ऐसाही होना चाहिये.'
वकी--(इन्द्र० से) नंदकीशोरजीको मध्यस्थ बनाने में आपको कोई एतराज है ?
इन्द्र०-(कुछ बिचारकर) जीहाँ. मुझे उन्हे मध्यस्थ बनाना कबूल है.
गुला०-अच्छा. तो अब नंदकिशोरजीको बुलवाना चाहिये.
वृद्धि०-मैं बुलवाकर लिवालाता हुं (बुलवानेको बाहर जाते है, और द्वारतक जा वापिस लौटकर चले आते है. )
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