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(१४) वकी०-यहां आओतो(धूलचंद आकर सामने खड़ा रहता है) धूल०-क्यो साहब ! क्या हुकम होता है ?
वकी -इन्तदासे लगाकर तानवें(१९९३)तककी वीरशासनकी फाईल तो जरा लेआओ. (धूलचंद फाईल लेने जाताहै)
इन्द्र०-(वकीलसा.से)आप फाईल मंगवाकर क्या दिखाना चाहते है, तान्वेंके पूर्व वीरशासनके अंदर पाक्षिक जैनपंचांग तो आपकी मान्यतानुसारही है, उसमें आप मुझे क्या दिखलावेंगे.
वकी०-पर्वतिथियोकी क्षयवृद्धि होनेकी सबूतमें आप इस ब्रामणीय पंचांगको पेश करते है, परंतु मैं तो अपने सबूतमें आपके गुरुदेवका जो मुख्य वाजिंत्र है, उसीको पेश कररहा हूं, इन दोनोंमेंसे सच्चा कोनसा और झूठाकोनसा यह आपही कहदीजिये.
इन्द्र०-मैं अपने पुरावेमें तानवे बादकी वीरशासनकी फाईल और यह पंचांग पेश करता हूं. . वकी०-इस चंडाशुंचंडु पंचांगको रामविजयजी से मान्य करतें है ? या उनके पूर्वजोंसे ?
इन्द्र०-इस पंचांगको तो समस्तजैनसमाज कितनेही वर्षांसे मानती चली आरही है.
वकी०-क्या १९९० में समस्त जैनसमाजकी आंखोंपर परदा लगाथा ?
इन्द्र०-सं. १९९० में भाद्रपद शुक्ल ५ मीका क्षय था और पंचमीको ही क्षय मानकर समस्त जैनसमाजने चतुर्थी शुक्रवारको ही संवत्सरी मनाई थी.
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