________________
(२१) चतुर्थ किरण. ( स्थान-पंचायती हवेली) आज वैशाख शुक्ल ६ का दिवस है, दो पहरका वक्त है. पंचायती हवेलीमें सेठसाहब के तर्फसे एक भारी जेवनबार है. जिसकी तयारीमें हवेलीमें चारों तरफ अलग २ पकवानों की तयारी चल रही है. चन्द लोग, लड्डु बना रहे है. घेवरकी थालीयें लगी हुई है, जलेबीका मसाला तैयार रखा है, तोकि जीमनेवालों के आतेही काम शुरू किया जावे, यही हाल दिगर सामनकी ओर हो रहा है. सारी हवेलीमें चहलपहल मची हुई है. कितने ही सेठ व सद्गृहस्थ लोग, हवेलीमें टहल रहे है. जिनमें वकील साहब-गुलाबचंदजी-वृद्धिचंदजी-लालचंदजीवगेरामी मोजुद है.
लाल०-(एक रसोईयेमें ) अरे माधो! दहीतो सब आ गया है न ?
माधो०-हां साहब ! आगया.
लाल०-तो दहीको पहले तपालिया जावे बादमें राइता बनाया जावे.
माधो०-जीहां साहब ! जैनीयोंकी रसोईमें हम कभीभी कच्चे दहीको काममें नहीं लेते है.
__ लाल-अच्छा, तो अब जलदि करो! तीन बजे लौ रसोई बनकर तयार हो जानी चाहिये.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com