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हुए चन्द बरातियोंका उतारा है. इमारतकी रमणीयता और भव्यताके साथ खसकी लटकती हुई टट्टीयों और बीजलीके पंखोंसे यहांकी तमाम गरमी काफुर हो गई हो, ऐसा मालूम होता है. उनाहलेकी दुपहरीमेंभी यहां माहफाल्गुनके दिनोंका आभास होता है. इस इमारत के एक कमरे में वकील साहब मोहनलालजी लैटे हुए कुछ पुस्तक पढ़ रहे है. और गुलाबचंद जी और वृद्धिचंदजी परस्पर बात कर रहे है.
गुला०-शेठ चंपालालजीने कल बरातका जुलूस तो बहुतही अच्छा निकाला ! हाथी, घोड़े, नकारा, निशान, चारचार घोड़ेकी बग्धीयें दोदो घोड़की वग्धीय मोटर और तांगे वगेरामी बहुत ही थे.
वृद्धि-आजकलके पैसेवालोंका पैसा शादी नुकता(मौसर) और मकान आदिमें ही खर्च होता है. न कि ज्ञाति उद्धार समाज उद्धार या कोइ धार्मिक कार्यमें ! (इतने में हसमुखराय जी चार नोकरोंके हाथमें टोकनीयों में कुछ सामन लिये वहां आ पहुचते है. और वकील साहबको सामनेसे देख व्यंगपूर्वक दर्यापित करते है.)
हँस-क्या मुझे अन्दर आनेकी इजाजत मिलेंगी? वकी०-आपके लिये और इजाजत ? गुला०-आईये तशरीफ लाईये हँस०-आपके यहां कितने व्यक्तियोंका उतारा है ? गुला०-ग्यारह.
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