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(३३)
हँस ० - सबही के लिये पान शरबतका सामान आप एक साथही लेवेंगें, या अलाहिदा२ देना होगा ?
वृद्धि० - शरीक ही रख दीजियेगा. (हँसमुखरायजी-भंग, बदामें, पिस्ते, इलायची, शरबतका मसाला और सक्कर, पान सुफारी वगैरा वस्तुऐं रखतें हैं . )
हँस०- ( वकीलसा० से) आप दुल्हे दुल्हनको पहुचानेकी रश्म में शरीक नहीं हुवे ?
वकी० - नात्र पढाने में देरी हो गईथी. ( हँसमुखरायजी जाते है. )
गुला०- ( वकील सा० से) इन्द्रमलजीको आज बुलवाकर अपनी चर्चा चलाने की हैं !
वकी० बुलाने का काम मेरा नहीं है, उनकी इच्छा होतो आवें. वृद्धि० - उनको तो मैं ले आउंगा. ( इतने में इन्द्रमलजी भी वहीं आजाते है. )
वकी - आईये ! आईये ! !
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इन्द्र० - जी, हां. कहिये क्या हुक्म होता है ?
वकी० - बैठीये. (इन्द्र० बैठते है . )
गुला०- ( इन्द्र० से ) दुल्हन के पिताने हस्तमोचन (दहेज) में अच्छा खासा जेवर दिया है.
इन्द्र० - हां दसेक हजार करीब होगा. इसके अलावा रत्नपुर स्टेशन से रत्नपुर पहुचने तकका तमाम खर्चा भी यही देवेंगे. सेठजी का तो एक पैसे का भी खर्चा नहीं होने का और शेठजीको
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