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पंचम किरण. ( स्थान-इन्द्रपुरशहरका रेल्वे स्टेशन)
प्रातःकालके आठ बजनेको आये है स्टेशनपर तांगो गाडियों व मोटर वालोंका तांता लगा हुआ है. शहरसे दना दन मुसाफिर आरहे है. कई मुसाफिर, मुसाफिर खाने में खड़े खड़े मुसाफिर खानेको प्लेट फार्मसे जुदा करने वाले लोहेके सीखचोंमेंसे प्लेट फार्मकी ओर गाड़ीके आने की राह निहाल रहे है. शहरकी तरफसें आने वाली टमटमों को दोडमें मात करती हुई बिजलीकेसे वेगवाली चाकलेट रंगकी एक बढ़िया नवीन मोटर आकर स्टेशन मास्तरकी ओफीसके सामने रूकी, मोटरसें एक हृष्ट पुष्ट बदनका (सिरपर मालवी पघड़ी बांधेहुए और गलेमें दुपट्टा डाले हुए ) व्यक्ति उतरकर स्टेशनमास्टरके कमरेमें दाखिल हो गया. ओफीस के बाहरी कमरेंमें बैठे हुए कारकुनने तुरंत अंदरके कमरे में दाखिल हो, स्टेशनमास्टरको इत्तला दी कि सेठ चंपालालजी आयेहै, आपसे मिलना चाहते है.
मास्टर०-उन्हे अंदर भेजदो! (सेठ० चंपा० अंदर जाते है)
स्टेशनमा०-आईये शेठ साहब ! तशरीफ रखिये. कहिये मिजाज तो अच्छा है?
सेठ०-आपकी महरबानी से सब ही अच्छा है. स्पेशीअलके आने में कितनी देर है ?
मास्टर०-दस बजके पिचप्पन मिनिटको आवेंगी. सेट०-इतनी देरी से आनेका कारण ? कल जो तार हमें
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