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है ? उस वक्त वहां ( लालबाग में) व्याख्यान में दिन गिने गयेथे रविवारको तीसवां दिन गिनकरही प्रत्याख्यान दियेथे यह नई सूझतो बादमें उत्पन्न हुई ( इतनें में धूलचंद, वीरशासन की फाईल ले आता है और वकील साहब के सामने टेबलपर रख देता है)
बकी ० - ( फाईल लेकर इन्द्रमलजीको देते हुए) लीजिये इसमें जो पाक्षिक जैन पंचांग है. उसमें बारहों तिथियोंकी क्षयवृद्धि निकाल दीजिये.
इन्द्र० - यहतो मैं आपको पहलेही कह चुका हूं कि इस फाईलमें तो आपकी मान्यतानुसार ही मिलनेवाला है ! परंतु इसके बादकी फाईल देखिये.
वकी० - अच्छा, यहतो आपके मुँहसे साबीत हुआ कि १९९० से इस नये मटकी मान्यता कायम हुई और १९९३ से प्रवृत्ति चालु हुई क्यों यहीन ?
इन्द्र० - आपको नयामत नयामत मालूम होता है लेकिन नविनतातो सिर्फ तिथिकी क्षय वृद्धि नहीं मानने मात्र ही है !
वकी:- आप अपने मुँह से १९९० से मान्यता और १९९३ से प्रवृत्ति होना कबुल करतें है, और फीर इस प्रवृत्तिको पुरानी कहते हो यहतो आपही के मुँहका न्याय है !
इन्द्र० - तिथियोंकी क्षयवृद्धि नहीं होती है, यहतो इन ४० - ५० वर्षकी नवीन मान्यता है.
वकी० - इसका पुराना क्या ? इन्द्र० - तत्र तरंगिणी.
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