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दीजिये प्रथमभाद्रपद मासके शुक्लपक्षमें मासक्षपणके प्रत्याख्यान दिया उस वक्त तक तो मान्यतामें कोई फर्क नहीं था सबब उन्होने भी अपने पंचांगोमें उस वक्त रविवार ही को संवत्सरी पर्व होना लिखाथा और रविवारकी ही संवत्सरी के हिसाबसे उन्होने मासखमणेच्छुको प्रत्याख्यान भी दियेथे परंतु दुनीयामें तो प्रख्याति ऐसे ही होती है. इसी ध्येयमें फसकर श्रीराम जंबुने यह नया मत निकाला है. और संवत १९९० में मी पंचमीका क्षय मानाथा यह आपका कहना घोड़े के सींग बनाने जैसा है.
इन्द्र०-मासक्षपणके प्रत्याख्यान तो दियेही नहीं जाते है फिर आप कैसे बोलते है ?
वकी०-मासक्षपणकी इच्छासे लिये हुए सोला उपवासके पञ्चखाण मासक्षपण ही को प्रगट करते है, जैसा कि कोई आकर दर्याफ्त करें कि आपको क्या है ? तब यही कहा जायगा कि मासक्षपण.. .. इन्द्र०-ठीक है, परंतु उस वक्त यह बात जाहिर नहीं करते हुए अव्यक्त ही रखी गईथी लेकिन मान्यता तो पंचमी क्षयवृद्धिकी ही थी!
वकी०-थोड़ी देरके लिये आपका कहना सत्य है. ऐसा मानले, ताहम यहतो निश्चित हो चुका कि तानवें से नहीं किंतु ९० सें इस मतका श्रीगणेश हुआ है ! लेकिन आपका कथन मान्य नहीं है, क्योंकि यह मान्यता जो १९९० से होती तो
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