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वकी ० - ( इन्द्रमलजी से ) रामविजयजीने यहतो नया ही मत निकाला है ?
इन्द्र० - इसमें आप भूलतें है. बिन शोचे समझेही ऐसा बोलते हो यदि आप इसे बिचारेंगें तो इसका मेद साफ २ मालूम हो जायगा.
वृद्धि ०- ( वकी० सा०से) आप इनको कितनाही कहिये ये कभी माननेवाले नहीं है. क्योकि इन्होने तो रामवि० मा० से सम्यक्त्व ग्रहण किया है.
गुला०- ( वृद्धि० से० ) सम्यक्त्र आत्माका गुण है, या बाजारकी भाजी ? जो दियालिया जा सके.
इन्द्र०- (शिघ्रता से) चारित्रभी आत्मिक गुण है, या बाजारकी भाजी जो दियालिया जावे ? जैसे फलां शक्षने चारित्र दिया फलां शक्षने चारित्र लिया. ठीक उसी प्रकार सम्यक्त्वभी.
बकी० - (इन्द्र० से ) देखिये साहब ! ज्ञान दर्शन चारित्र तीनही आत्माके गुण है और सम्यक्त्व उच्चरानेका विधान शास्त्रों में है उसी अनुसार वर्तमान में सम्यक्त्व उचरातें भी है उसका मतलब यह है कि शुद्धदेव शुद्धगुरु और शुद्धधर्म के अलावा अन्यको वंदन पूजन नहीं करना. (बीचहीमें) इन्द्र० - श्रीमान् रामचंद्रसूरिजी इसमें नवीन कार्य क्या करते है ? वकी० - ज्यादेतो नहीं किंतु नवीन इतनाही करते है कि रामविजयजी की हां में हां मिलानेवाले जो है वेही शुद्धगुरु चाहे उनमें चारित्र हो या न हो.
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