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देखकर ) देखो हँसमुखरायजी भी आगये है.
हँस०-जीहां आतो गया. सेठ०-कहो कुछ नई खबर लाये हो क्या ?
हँस०-जीहां पालीताणामें तिथि चर्चाके सूर बजने लगे है. (बीचहीमें)
चीमनलालजी (सेठके चचेरे भाई) वहांतो श्रीमान् उपा ध्यायजी महाराज विराजमान है, किसकी ताकात है? कि उपाध्यायजीका मुकाबला करें. हँस-सुननेमें तो ऐसा आया है कि हँससागरजी सामने पड़है.
चीम०-हँससागरजीकी क्या ताकात ? वेतो सिर्फ गन्दे बोल बोलनाहीं जानते है. (इतनेमें)
लालचंदजी-नहीं साहब ! मुनि हँससागरजी मुद्देकी बात को पकड़नेवाले है. . चीम०-(कुछ मुंह बिगाडकर) उंहूं ऐसेका तो नाम भी मत लीजिये. वेतो एक ग्रहस्थ के मुहसे भी अशोभनीय ऐसे श. न्दोच्चार करने में हिच किचाट नहीं करते, वे इतने भरभी सहम नहीं जाते, किंतु ऐसे शब्द लिखते तकमी है, यह बात याद रखने योग्य है कि "सो बका और एक लिखा" मुँहसे कित. नाभी बोला हुआ उतना नुकशान नहीं कर सकता है, कि जि तना एक वक्तका लिखा हुआ, इनने "दिशा फेरवो” नामक जो पुस्तक लिखी है उसमें कितने ही ऐसे २ शब्दोंका प्रयोग किया है कि उनका विवेचन नहीं करना ही ठीक है.
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