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लाल०-(कुछ जोशमें आकर) सेठसाहब ! आपके साथ विवाद करना मैं वाजिब नहीं समझता परंतु "दिशा फेरवो" में एकभी बात खोटी नहीं है इस बाबत आजदिन तक आपका गुरू समुदाय अपशब्द अपशब्द यह गीतगान करही बैठ रहा है उसमें से क्या एक सवालकी भी सफाई दी गई है। सिर्फ वीरशासन पत्रद्वारा यद्वा तद्वा लिखवा करही संतोष मानलिया है, जब कि कोई व्यक्ति हार खाकरभी अपने मुंहसे कबूल नहीं करता व खुदही विजयी हुआ है ऐसा जाहिर करता है, ऐसे व्यक्ति के लिये एक कवि की यह उक्ति दुरूस्त मालूम होती कि "अम्मा मैंने मल्ल पछाड़ा छाती उपर धम्म, वो शरमिंदा नीचा देखे उपर देखें हम्म" ।
ज्ञान०-(मनही मन यदि बात बढ़ गई तो ठीक नहीं होगा इस बातको इस वक्त टाल देनाही अच्छा होगा) प्रगट (इन्द्र० से) कहिये आपके ठहरने के लिये कोनसा मुकाम आप पसंद करते है ? यदि सौभाग्यभवन पसंद होतो वह खालीही है यदि सेठसाहबबाला कमरा पसंद हो तो वह भी खाली करवा दिया जाय क्या नई बिल्डिंगका पहली मंजीलवाला कमरा आपको जंचता है ? मेरी रायतो नई बिल्डिंगका पहली मंजी. लवाला कमराही आपके लिये योग्य है. क्योकि वहां दुल्हेका जेवर व पोशाक वगैरह सुरक्षित रखनेकी उत्तम सोय है.
इन्द्र०-मैं इतने समय तक ठहर नहीं सकता कारण मुझे तो इन्द्रपुरसे जरुरीमें बाला बालाही जाना पड़ेगा.
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