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इन्द्र०-नहीं इसमें आपकी समझका फेर है. जो शास्त्रविरुद्धप्ररुपणा करते हो उनको वंदन नहीं करनेका तो जरुर ही कहते है और कहनाभी चाहिये और जिनमें चारित्र न हो उनकातो कहनाही क्या.
वकी०-कहिये ! मौजुदा जमाने में सत्यप्ररूपकतो आपके एक रामविजयजीही है और अन्य विरुद्ध प्ररूपणावालेही है ? कहिये इन विरुद्ध प्ररुपकोंके नामतो सुना दीजिये.
इन्द्र--सुनिये सागरानंदसूरि एक नेमिसरि दो वल्लभमरि तीन नीतिसूरि चार मोहनसूरि पांच कुमुदभरि छ भक्तिसरि सात औरभी इनकी मान्यातासे सहयोग करते है वे सबही है.
वकी०-बस आपका मतलब तो यही रहा कि रामविजयजीकी हां में हां मिलानेवाले जो भी है वे सब शुद्ध प्ररूपक
और शुद्ध चारित्रके पालनेवाले उनको वंदन करनेसे सम्यक्त्व टिक रहता है, अन्यको वंदन करनेसे सम्यक्त्व नष्ट हो जाता है, वाहरे वाह ! सम्यक्त्व चारित्रका ठेका तो आपके रामगुरुनेही ले लिया है !! आपके राममूरिकी विरुद्ध प्ररूपणा. ओंकों जो सामान्य तौरपर अंकित की जाय तो एक मोटीसी किताब बन जाय. ___ गुला०-(वकील सा० से) साहब ! आप देरी क्यो करते हों मुनाही दीजिये.
बकी०-अब तो समय काफी हो चुका है यदि आपको कुछ सुननेकी इच्छा हो तो रविवारके दिवस मेरे यहां आप
जय.
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