Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बधनकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ८
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प्रदेशों प्रमाण असंख्याती वर्गणायें होती हैं उनका समुदाय तीसरा स्पर्धक होता है।
इसी प्रकार पूर्वोक्त क्रम से अन्य-अन्य स्पर्धक जानना चाहिये। क्योंकि अनुक्रम से एक-एक अधिक वीर्याणु से वृद्धि को प्राप्त वर्गणाओं के समूह को स्पर्धक कहते हैं ।
इस प्रकार से स्पर्धक एवं अन्तर प्ररूपणा का आशय जानना चाहिये । अब क्रमप्राप्त स्थान और अनन्तरोपनिधा प्ररूपणा का कथन करते हैं। स्थान व अन्तरोपनिधा प्ररूपणा
सेढी असंखभागिय फड्.हिं जहन्नयं हवई ठाणं ।
अंगुल असंखभागुत्तराई भुओ असंखाइ ॥८॥ शब्दार्थ सेढी असंखभागिय-श्रेणि के असंख्यातवें भाग में रहे हुए आकाश प्रदेश प्रमाण, फड्डेहि-स्पर्धकों का, जहन्नयं-जघन्य, हवई होता है, ठाणं—(योग) स्थान, अंगुलअसंखभागुत्तराई–अंगुल के असंख्यातवें भाग में रहे हुए आकाश प्रदेश प्रमाण अधिक-अधिक स्पर्धकों से, भुओ-पुनः अन्यअन्य, असंखाइ--असंख्यात ।
गाथार्थ-श्रेणी के असंख्यातवें भाग में रहे हुए आकाश प्रदेश प्रमाण स्पर्धकों का जघन्य (योग) स्थान होता है तथा अंगुल के असंख्यातवें भाग में रहे हुए आकाश प्रदेश प्रमाण अधिक-अधिक स्पर्धकों से पुनः अन्य-अन्य असंख्यात योगस्थान होते हैं ।
विशेषार्थ--गाथा में योगस्थान के निर्माण की प्रक्रिया का निर्देश करते हुए उनकी संख्या का प्रमाण बतलाया है।
योगस्थान बनने की प्रक्रिया का संकेत करते हुए बताया है 'सेढी असंखभागिय फड्डेहिं जहन्नयं हवईठाणं' श्रेणी के असंख्यातवें भाग प्रमाण स्पर्धकों का जघन्य (प्रथम) योगस्थान होता है। इसका आशय यह है कि पूर्व की गाथा में जिसके स्वरूप का प्रतिपादन किया