Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 346
________________ असत्कल्पना द्वारा अनुकृष्टि प्ररूपणा का स्पष्टीकरण : परिशिष्ट ११ २६६ अधिक अध्यवसाय त्रिसमयोन उत्कृष्ट स्थितिबंध में होते हैं। इस प्रकार असातावेदनीय के अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिबंध के समान साता वेदनीय का जघन्य स्थितिबंध प्राप्त हो वहाँ तक ऊपर-ऊपर के स्थितिस्थान में जितने-जितने अध्यवसाय होते हैं, वे सब और उनसे अधिक तीव्र शक्ति वाले कुछ नये अधिक-अधिक अध्यवसाय होते हैं। ____ असाता के अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिबंध के समान सातावेदनीय के जघन्य स्थितिबंध में जो रसबंध के अध्यवसाय हैं, उनमें के प्रारम्भ के एक असंख्यातवें भाग जितने छोड़कर शेष सर्व और जो छोड़े हैं उनसे अधिक नये अध्यवसाय साता-वेदनीय के समयोन जघन्य स्थितिबंध में होते हैं। समयोन जघन्य स्थितिबंध में जो अध्यवसाय हैं, उनमें के प्रारम्भ के असंख्यातवें भाग जितने छोड़कर शेष सर्व एवं जो छोड़े हैं, उनसे कुछ अधिक नये साता के दो समयोन जघन्य स्थिति-बंध में होते हैं। ___ इस तरह असाता के अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिबंध के समान साता के जघन्य स्थितिबंध-स्थान के अध्यवसायों की अनुकृष्टि प्रथम कंडक के चरम स्थितिस्थान में पूर्ण होती है। समयोन जघन्य स्थितिबंध के अध्यवसायों की अनुकृष्टि कंडक के बाद के नीचे के स्थितिस्थान में पूर्ण होती है । इस तरह साता के जघन्य स्थितिबंध के अन्तिम कंडक के पहले स्थिति स्थान की अनुकृष्टि उसी कंडक के चरम स्थितिस्थान रूप जघन्य स्थितिबंध में पूर्ण होती है। शेष सभी परावर्तमान शुभ प्रकृतियों की अनुकृष्टि भी इसी प्रकार जानना चाहिये। असातावेदनीय आदि परावर्तमान अशुभ प्रकृतियों के अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिबंध में जो रसबंध के अध्यवसायस्थान हैं, वे सब और उनसे तीव्र शक्ति वाले कुछ अधिक नये अध्यवसाय समयाधिक जघन्य स्थितिबंधस्थान में होते हैं, और समयाधिक जघन्य स्थितिबंधस्थान में जो अध्यवसाय हैं, वे सब एवं उनसे तीव्र शक्ति वाले थोड़े नये दो समयाधिक जघन्य स्थितिबंधस्थान में होते हैं। इस तरह साता-वेदनीय आदि प्रतिपक्ष

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