Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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अपरावर्तमान ५५ अशुभ प्रकृतियों की तीव्रता - मंदता : परिशिष्ट १६ ३१७
१. अभव्य प्रायोग्य ( अन्तः कोडाकोडी रूप ) जघन्य स्थितिस्थान तीव्रतामंदता के अयोग्य हैं । जिन्हें प्रारूप में १ से ८ तक के अंक द्वारा बताया है ।
२. निवर्तनकण्डक की प्रथम स्थिति में जघन्य अनुभाग से जघन्य स्थिति में उत्तरोत्तर अनुभाग अनन्तगुण है । जिसे प्रारूप में ६ से १२ तक के अंक द्वारा बताया है ।
३. तदनन्तर कण्डक से ऊपर प्रथम स्थिति में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है । जिसे प्रारूप में अंक १२ के सामने ६ का अंक देकर बताया है ।
४. इसके बाद कण्डक से ऊपर द्वितीय स्थिति में जघन्य अनुभाग अनन्त - गुण है । जिसे प्रारूप में १३ के अंक से बताया है ।
५. उसके नीचे द्वितीय स्थिति में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है । जिसे प्रारूप में अंक १३ के सामने १० का अंक देकर बताया है ।
६. इसके बाद तृतीय स्थिति में जघन्य अनुभाग अनन्तगुण है । जिसे प्रारूप में १४ के अंक से बताया है ।
यथाक्रम से अनन्तगुणत्व तब तक जघन्य अनुभाग प्राप्त होता है । १७-१४ आदि लेते हुए उत्कृष्ट
७. इस प्रकार एक ऊपर और एक नीचे कहना चाहिये, जब तक उत्कृष्ट स्थिति का जिसे प्रारूप में १४ - ११, १५- १२, १६- १३, स्थिति का जघन्य अनुभाग २० के अंक तक बताया है ।
८. शेष कण्डक मात्र उत्कृष्ट स्थिति का जो अनुभाग अनुक्त है, वह सर्वोत्कृष्ट स्थिति के जघन्य अनुभाग से कण्डक मात्र स्थितियों की प्रथम स्थिति का जघन्य अनुभाग अनन्तगुण है, फिर उसकी उपरितन स्थितियों में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है । पुनः उसके बाद की उपरितन स्थिति में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है । इस प्रकार उत्कृष्ट अनुभाग का अनन्तगुणत्व उत्कृष्ट स्थिति पर्यन्त कहना चाहिये । जिसे प्रारूप में कण्डक प्रमाण ( १७-२०) चार स्थितियां लेकर बताया है । इनमें प्रथम स्थिति १७ के अंक से है । तत्पश्चात १८, १९, २० के अंक तक अनन्तगुणत्व जानना चाहिये ।