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परावर्तमान १६ शुभ प्रकृतियों की तीव्रता-मंदता : परिशिष्ट २१
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का जघन्य अनुभाग पूर्वोक्त प्रमाण ही जानना अर्थात् स्तोकं जानना | जिसे में ८६ के अङ्क से लेकर ५१ तक के अङ्क तक बताया है ।
प्रारूप
२. उससे (सागरोपम शतपृथक्त्व से ) भी नीचे अनुभाग अनन्तगुण एक भाग हीन कण्डक के असंख्येय भाग तक जानना ।
३. यहाँ असत्कल्पना से प्रत्येक कण्डक में १० संख्या समझना चाहिये । इस नियम से एक भागहीन कण्डक के असंख्येय भाग की ७ संख्या ली है । जिसे प्रारूप में ५० से ४४ तक के अङ्क द्वारा बतलाया है । एक भाग अवशेष रहा, उसके ४३, ४२, ४१ ये तीन अङ्क बतलाये हैं ।
४. असंख्येय भागहीन ( संख्येयभागहीन ) शेष असंख्येयभाग स्थितियों की 'साकारोपयोगी' संज्ञा है ।
५. उसके बाद उत्कृष्ट स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है । जिसे प्रारूप में ४४ के अङ्क के सामने आने वाले ६० के अङ्क से बतलाया है । ये स्थितियाँ भी कण्डक मात्र होती हैं । इसलिए ६० से ८१ अङ्क तक की दस संख्या को कण्डक जानना ।
६. इसके बाद जघन्य अनुभाग जहाँ से कहकर निवृत्त हुए थे, वहाँ से नीचे का जघन्य अनुभाग अनन्तगुण है । जिसे प्रारूप में ४३ के अ
बतलाया है ।
७.
इसके पश्चात् उत्कृष्ट स्थिति का अनुभाग कण्डक प्रमाण अनन्तगुण है, जिसे ८० से ७१ अङ्क तक बतलाया है ।
८. इसके बाद पुनः जघन्य अनुभाग से नीचे का अनुभाग अनन्तगुण है । जिसे प्रारूप में ४२ के अङ्क द्वारा बतलाया है ।
९. इसके बाद पुन: उत्कृष्ट स्थिति का अनुभाग अनन्तगुण कण्डकमात्र तक जानना, जिसे ७० से ६१ तक के अङ्क द्वारा बतलाया है । पुनः जघन्य अनुभाग से नीचे का अनुभाग अनन्तगुण है, जिसे प्रारूप में ४१ के अङ्क से बतलाया है ।
१०. इसके बाद उत्कृष्ट स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग कण्डक प्रमाण अनन्तगुण है, जिसे ६० से ५१ तक के अङ्क द्वारा बतलाया है । इस प्रकार