Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 391
________________ ३४४ पंचसंग्रह : ६ अनन्तगुण जानना चाहिये। जिसे प्रारूप में १२ से २० के अंक पर्यन्त बताया है। ___३. उसके बाद जघन्य स्थिति के उत्कृष्ट पद में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है, जिसे प्रारूप में २० के अंक के सामने के ११ के अंक से बतलाया है। ___४. इससे निवर्तनकण्डक से ऊपर के प्रथम स्थितिस्थान में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है। जिसे १२ के अंक से बताया है । द्वितीय स्थिति के उत्कृष्ट पद में अनुभाग अनन्तगुण है, जिसे २१ के अंक के सामने १२ के अंक से बतलाया है। इस प्रकार एक जघन्य, एक उत्कृष्ट अनुभाग तब तक जानना चाहिए जब तक कि अभव्यप्रायोग्य जघन्य अनुभाग के नीचे की चरम स्थिति आती है। जिसे प्रारूप में २२-१३, २३-१४, २४-१५ आदि क्रम लेते हुए अन्त में ३६-३० के अंक से बताया है। ५. अभव्यप्रायोग्य जघन्य अनुभाग की चरम स्थिति ४० के अंक से बताई है। ६. अभव्यप्रायोग्य जघन्य अनुभागबंध विषयक प्रथम स्थिति में जघन्य अनुभाग अनन्तगुण है । द्वितीयादि स्थितियों (सागरोपम शतपथक्त्व प्रमाण स्थितियों) पर्यन्त तावन्मात्र-तावन्मात्र अर्थात् अनन्तगुण है । जिसे प्रारूप में ४१ से ६० अंक पर्यन्त बतलाया है। इन स्थितियों को परावर्तमान जघन्य अनुभागबंधप्रायोग्य भी कहते हैं। ७. इससे ऊपर प्रथम स्थिति का जघन्य अनुभाग अनन्तगुण, उससे भी द्वितीय जघन्य स्थिति का अनुभाग अनन्तगुण, इस प्रकार निवर्तनकण्डक के असंख्येय भाग पर्यन्त जानना । जिसे प्रारूप में ६१ से ६७ के अंक पर्यन्त बताया है। ___ ‘एकोऽवतिष्ठते' इस नियम के अनुसार निवर्तनकण्डक के एक अवशिष्ट भाग को बताने के लिए ६८, ६६, ७० ये तीन अंक बतलाये हैं। ८. जिस उत्कृष्ट स्थितिस्थान के अनुभाग का कथन कर निवृत्त हुए, उससे उपरितन स्थितिस्थान में अनन्तगुण, अनन्तगुण अभव्यप्रायोग्य अनु

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