Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 392
________________ तिर्यचद्विक और नीचगोत्र की तीव्रता-मन्दता : परिशिष्ट २४ ३४५ भागबंध की चरम स्थिति के नीचे तक कहना चाहिए । जिसे प्रारूप में ३१ से ४० तक के अंक पर्यन्त बतलाया है। ६. जिस स्थितिस्थान से जवन्य अनुभाग का कथन करने निवृत्त हुए थे, उससे उपरितन स्थितिस्थान में जघन्य अनुभाग अनन्तगुण है। जिसे प्रारूप में ६८ के अंक से बताया है। १०. अभव्य प्रायोग्य जघन्य अनुभागबंधविषयक प्रथम स्थिति में . उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है। द्वितीयादि स्थितिस्थान तब तक कहना यावत् कण्ड कमात्र स्थितियां अतिक्रांत होती हैं। जिसे प्रारूप में ४१ से ५० के अंक तक बताया है । ११. जिस स्थितिस्थान के जघन्य अनुभाग को कहकर निवृत्त हुए थे, उससे उपरितन जघन्य स्थितिस्थान का अनुभाग अनन्तगुण है । जिसे प्रारूप में ६६ के अंक से बताया है । १२. अभव्यप्रायोग्य जघन्य अनुभाग विषयक स्थितिस्थान से ऊपर कण्ड कमात्र स्थितिस्थान अनन्तगुण जानना चाहिए। जिसे प्रारूप में ५१ से ६० के अक पर्यन्त बताया है। १३. इस प्रकार एक स्थिति का जघन्य अनुभाग और कण्डकमात्र स्थितियों का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण तब तक जानना, जब तक कि अभव्य प्रायोग्य जघन्य अनुभाग की चरम स्थिति आती है। जिसे प्रारूप में ७० के अंक से जानना। १४. अभव्यप्रायोग्य जघन्य अनुभाग बंध के ऊपर प्रथम स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है। जिसे प्रारूप में ६१ के अंक से जानना । प्रागुक्त जघन्य अनुभागबंध के ऊपर का जघन्य स्थितिस्थान अनन्तगुण, जिसे प्रारूप में ७१ के अंक से बताया है और प्रागुक्त उत्कृष्ट अनुभाग से ऊपर के स्थितिस्थान का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है। जिसे ६२ के. अंक से समझना। इस प्रकार एक स्थितिस्थान का जघन्य अनुभाग और एक स्थिति

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