Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 373
________________ पंचसंग्रह : ३२६ : उत्कृष्ट स्थिति के उत्कृष्ट अनुभाग ६० से ५१ तक सागरोपम शतपृथक्त्व प्रमाण हैं । ११. इसके बाद पुनः प्रागुक्त जघन्य अनुभाग से नीचे का अनुभाग अनन्तगुण है जिसे ४० अङ्क से बतलाया है । इसके बाद उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है, जिसे ५० के अङ्क से बतलाया है । इसी प्रकार जघ. अनु. तब तक कहना चाहिए, जब तक जघन्य अनुभाग की जघन्य स्थिति न आ जाये । ये परस्पर आक्रांत स्थितियां हैं, अतः अब जघन्य ३६, उत्कृष्ट ४६, जघन्य ३८, उत्कृष्ट ४८, जघन्य ३७, उत्कृष्ट ४७, इस प्रमाण से अनुभाग का दिग्दर्शन कराते हुए उत्कृष्ट स्थिति का जघन्य अनुभाग २१ के अ पर्यन्त जानना और उत्कृष्ट स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग ३१ के अङ्क पर्यन्त जानना । १२. इसके पश्चात् उत्कृष्ट स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग कण्डक प्रमाण अनन्तगुण कहना, जिन्हें ३० से २१ तक के अङ्ग द्वारा बतलाया है | →→

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