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परावर्तमान २८ अशुभ प्रकृतियों की तीव्रता - मंदता : परिशिष्ट २२ ३३१ प्रकार आगे की द्वितीय आदि स्थितियों में कण्डक के असंख्येयभाग तक अनन्तगुणा कहना चाहिये । असत्कल्पना से कण्डक का संख्या प्रमाण १० अङ्क समझना चाहिये और उसका असंख्यातवां भाग ७ अङ्क, जिसे प्रारूप में ५१ से ५७ तक के अङ्क द्वारा बतलाया है तथा 'एकोऽवतिष्ठते' से तीन अङ्क ( ५८, ५६, ६० ) लिये हैं ।
३. परावर्तमान अशुभ प्रकृतियों की जघन्य स्थिति के उत्कृष्ट पद में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है । इसी प्रकार द्वितीय, तृतीय आदि कण्डक प्रमाण स्थितियों में अनन्तगुण, अनन्तगुण जानना । जिन्हें प्रारूप में अंक ११ से २० तक के अङ्क पर्यन्त बतलाया है ।
४. जिस स्थिति के जघन्य अनुभाग को कहकर निवृत्त हुए थे, उसकी उपरितन स्थिति का अनुभाग अनन्तगुण है, जिसे प्रारूप में ५८ के अङ्क से प्रदर्शित किया है ।
५. प्रागुक्त उत्कृष्ट अनुभाग रूप कण्डक से ऊपर की प्रथम, द्वितीय, तृतीय यावत् कण्डक प्रमाण स्थितियों में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण, अनन्त - गुण है । जिसे प्रारूप में २१ के अङ्क से ३० के अङ्क पर्यन्त बतलाया है ।
६. इसके पश्चात् जिस स्थितिस्थान के जघन्य अनुभाग को कहकर निवृत्त हुए, उससे ऊपर की जघन्य स्थिति में जघन्य अनुभाग अनन्तगुण होता है । जिसे प्रारूप में ५६ के अङ्क से बतलाया है ।
७. इसके बाद पुनः प्रागुक्त कण्डक से ऊपर की कण्डक प्रमाण स्थितियों में उत्कृष्ट अनुभाग क्रमशः अनन्तगुण, अनन्तगुण जानना चाहिए। जिसे प्रारूप में ३१ से ४० के अङ्क पर्यन्त बतलाया है ।
८. इस प्रकार एक स्थिति का जघन्य अनुभाग और कण्डकमात्र स्थितियों का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण तब तक कहना चाहिए, यावत् जघन्य अनुभाग सम्बन्धी एक-एक स्थितियों की 'तानि अन्यानि च - वही और अन्य रूप अनुकृष्टि से कण्डक पूर्ण हो जाये अर्थात् कण्डक पर्यन्त अनन्तगुण कहना चाहिए । प्रारूप में जघन्य अनुभाग विषयक एक स्थिति ६० के अङ्क से अनन्तगुणी बताई है और उत्कृष्ट अनुभाग विषयक स्थितियाँ कण्डक प्रमाण