Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 379
________________ ३३२ पंचसंग्रह : ६ अनन्तगुणी ४१ से ५० के अंक पर्यन्त बतलाई हैं । इस प्रकार सागरोपम शतपथक्त्व प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग ५० के अंक पर्यन्त कहना चाहिए। ६. इसके पश्चात् परस्पर आक्रान्त स्थितिस्थान हैं । अतः उसके ऊपर एक स्थिति, एक स्थिति का जघन्य अनुभाग और सागरोपमशतपृथक्त्व प्रमाण स्थिति से उपरितन स्थिति का अनुभाग अनन्तगुण कहना । जिसे प्रारूप में क्रमशः ६१-५१ के अंक से बताया है । इसके ऊपर पुनः प्रागुक्त स्थिति की उपरितन स्थिति का जघन्य अनुभाग अनन्तगुण है और सागरोपमशतपृथक्त्व प्रमाण से ऊपर की द्वितीय स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण कहना । जिसे प्रारूप में क्रमशः ६२-५२ के अंक से बताया है । ..१० इस प्रकार एक जघन्य और एक उत्कृष्ट का अनुभाग अनन्तगुण तब तक कहना यावत् असातावेदनीय के जघन्य अनुभाग की सर्वोत्कृष्ट स्थिति प्राप्त होती है। जिसे प्रारूप में ६३-५३, ६४-५४, ६५-५५ आदि लेते हुए ८० के अंक तक जघन्य स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग बताया है। ११. अभी जो उत्कृष्ट अनुभाग की कण्डक मात्र स्थितियां अनुक्त हैं । वे भी यथोत्तर अनन्तगुणी जानना । जिसे प्रारूप में ७१-८० के अंक पर्यन्त उत्कृष्ट स्थिति के उत्कृष्ट अनुभाग से बताया है।

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