Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

Previous | Next

Page 384
________________ त्रसचतुष्क की तीव्रता - मन्दता: परिशिष्ट २३ ३३७ २. तदनन्तर समयोन, समयोन उत्कृष्ट स्थिति का जघन्य अनुभाग अनन्तगुण, अनन्तगुण कण्डक मात्र तक जानना | जिसे प्रारूप में ८६ से ८१ के अंक तक बताया है । ३. इसके बाद उत्कृष्ट स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है, जिसे प्रारूप में ८१ के अंक के सामने के ६० के अंक द्वारा बतलाया है । ४. ततः कण्डक से नीचे प्रथम स्थिति का जघन्य अनुभाग अनन्तगुण है । ततः समयोन उत्कृष्ट स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है । जिसे प्रारूप में क्रमशः ८६ से ८० के अंक तक से बताया है । ५. इसके बाद कण्डक की अधस्तनी द्वितीय स्थिति में जघन्य अनुभाग अनन्तगुण और द्विसमयोन उत्कृष्ट स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है । जिसे प्रारूप में क्रमशः ७६- -८८ के अंक से जानना । यह तब तक कहना यावत् १८ कोडाकोडी सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति है । जिसे प्रारूप में ७६ ८८, ७८ ८७ आदि अंक बतलाते हैं । यह क्रम ६१-७० के अंक तक जानना । ६. १८ कोडाकोडी सागरोपम से ऊपर कण्डक मात्र स्थिति अनुक्त है । उसकी प्रथम स्थिति का जघन्य अनुभाग अनन्तगुण है । उससे समयोन उत्कृष्ट स्थिति का जघन्य अनुभाग पूर्ववत् है, द्विसमयोन उत्कृष्ट स्थिति का भी पूर्ववत् है ( अर्थात् अनन्तगुण है ) । इस प्रकार अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिबंध तक जानना । जिसे प्रारूप में ६० से ४० के अंक तक बतलाया है । ७. उसके बाद अधस्तन प्रथम स्थिति में जघन्य अनुभाग अनन्तगुण है । इस प्रकार नीचे कण्डक के असंख्येय भाग तक जानना चाहिये । जिसे प्रारूप में ३६ से ३३ के अंक तक बतलाया है । 'एकोऽवतिष्ठते' इस संकेत से ३२, ३१, ३० अंक जानना । ८. अठारह कोडाकोडी सागरोपम से ऊपर कण्डक मात्र स्थितियों का

Loading...

Page Navigation
1 ... 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394