Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 358
________________ परावर्तमान १६ शुभ प्रकृतियों की अनुकृष्टि का प्रारूप : परिशिष्ट १५ ३११ २. सातावेदनीय में सागरोपमशतपृथक्त्व प्रमाण स्थितिस्थानों में १. 'तानि अन्यानि च' और पल्यो. असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थितिस्थानों में २. 'तदेकदेश और अन्य' इस तरह दो प्रकार की अनुकृष्टि होती है । ३. साता की उत्कृष्ट स्थिति के जो अनु. स्थान हैं, वे सभी एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिस्थान में भी होते हैं और अन्य भी होते हैं । ४. प्रारूप में २० का अंक साता की उत्कृष्ट स्थिति का द्योतक है और उसके सामने दिये गये बिन्दु अनुभाग स्थानों के सूचक हैं । ५. समयोन उत्कृष्ट स्थितिस्थान के सूचक १९वें अंक में उन सर्व अनु. स्थानों की अनुकृष्टि २०वें अंक के बिन्दुओं द्वारा बतलाई है तथा 4 अन्य अनु. स्थानों का सूचक है | ये 4 द्वारा सूचित अन्य अनुभाग स्थान उत्तरोत्तर अधिक जानना । यह क्रम उत्तरोत्तर सागरोपमशतपृथक्त्व तक जानना, जिसे प्रारूप में १२ के अंक तक बतलाया है । यह क्रम अभव्यप्रायोग्य असातावेदनीय की जघन्य स्थिति के बन्ध तक चलता है । ६. उसके आगे 'तदेकदेश और अन्य के प्रमाण से अनुकृष्टि सातावेदनीय के जघन्य स्थितिबन्ध तक जानना । जिसकी अनुकृष्टि पूर्वोक्त अपरावर्तमान अशुभ प्रकृतिवत् है । CO

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