Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 359
________________ परिशिष्ट १६ तिर्यंचद्विक और नीचगोत्र की अनुकृष्टि का प्रारूप स्थिति स्थान ०००००००० अनु बंधाध्य. . . . तदेक देश और अन्य . . .... ००० ० ० ० ० ० 4.०० ०० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ܘ ܘ ܘ ܘ ܘ ० ० ܘ ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ०.००० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ००००००० ० ० ० ० ० ० ० ००००००००० ००० ००००००० ० ० ० ० ० ० ० ० ० तनि अन्यानिच तदेक देश और समय ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० 4 4. ०००० .००० ० ० . अनुकष्टि समाप्त) ००००००००० . ० ० ० १. तियंचद्विक और नीचगोत्र में तीन प्रकार की अनुकृष्टि होती है (अ) 'तदेकदेश और अन्य'-जिसे अभव्य प्रा. ज. स्थान से नीचे के स्थान बताने वाले १ से ६ तक के अंक द्वारा बताया है। (आ) 'तानि अन्यानि च'-अभव्यप्रायोग्य जघन्य अनुभागबन्ध के योग्य सागरोपमशतपृथक्त्व स्थितियों में 'तानि अन्यानि च' इस क्रम से जानना जिसे ७ से १६ तक के अंक द्वारा बताया है। (इ) 'तदेकदेश और अन्य'-इसके आगे उत्कृष्ट स्थितिस्थान पर्यन्त जानना । जिसे १७ से २२ तक के अंक द्वारा स्पष्ट किया है। 01

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