Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 352
________________ अपरावर्तमान ५५ अशुभ प्रकृतियों की अनुकृष्टि : परिशिष्ट १२ ३०५ उससे आगे के स्थितिस्थान में समाप्त होती है । इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थितिस्थान तक समझना चाहिये । ७ इसी प्रकार से छियालीस अपरावर्तमान शुभ प्रकृतियों की अनुकृष्टि प्ररूपणा जानना चाहिए । लेकिन इतना विशेष है कि उत्कृष्ट स्थितिस्थान से प्रारम्भ करके अनुकृष्टि अयोग्य जघन्य स्थितिस्थानों को छोड़कर शेष जघन्य स्थितिस्थान तक समाप्त करना चाहिये ।

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