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परिशिष्ट १३
अपरावर्तमान ४६ शुभ प्रकृतियों की अनुकृष्टि
का प्रारूप
(पराघात, बन्धननाम १५, शरीरनाम ५, संघातनाम ५, अंगोपांग ३, शुभवर्णादि ११, तीर्थंकर, निर्माणनाम, अगुरुलघुनाम, उच्छ्वास, आतप, उद्योतनाम=४६)।
स्थिति स्थान
अनु. स्थान ००००००००० उ त्कृष् स्थिति. अनुकृषि प्रारम्भ
००००.AA
०००००AA
० ००० ०AA
० ० ००
७०००० AA
और अन्य अनुकृष्टि का विचार उन सव स्थानों में तदेक देश" __ पाल्यो अस' अनुकृषि अयोग्य
जघन्य स्थिति अमव्य प्रायोग्य
(अनुकृष्टि समाप्त)
15 जघन्य स्थिति
१. अपरावर्तमान शुभ प्रकृतियों की अनुकृष्टि उत्कृष्ट स्थितिबन्धस्थान से प्रारम्भ होती है। ___ २. उत्कृष्ट स्थितिबन्धस्थान में जो अनु. स्थान होते हैं, उनका असंख्यातवा भाग छोड़कर शेष भाग और अन्य उससे अधस्तनवर्ती स्थितिस्थान में होते हैं। जिसे ३ बिन्दु रूप असंख्यातवां भाग छोड़कर शेष भाग को लेते हुए