Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 350
________________ परिशिष्ट १२ अपरावर्तमान ५५ अशुभ प्रकृतियों की अनुकृष्टि का प्रारूप (आवरणद्विक १४, मोहनीय २६, अन्तराय ५, अशुभ वर्णादि ६, उपघात १ =५५)। स्थिति स्थान जघन्यस्थिति स्थान __ अनुकृदिर अयोग्य प.यो असं अभव्य प्रायोग्य जपयरियति तदेक देश और अन्य इस प्रकार के मनुक्रम से अनुकृष्टि विधान Je अनुबंधाप्यवसाय स्थान ०००००००००० अनुकृष्टि प्रारम्म ००००००००० OOOOOOAA ०००००००० ००००AA ००००AAA ०० ००AA GAA ०००. AAA (अनुकृष्टि समाप्त) ००० उत्कृष्ट स्थिति स्थान १ अपरावर्तमान अशुभ प्रकृतियों की अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिबंध के पश्चात की स्थितिवृद्धि से अनुकृष्टि प्रारम्भ होती है। २ अभव्य प्रायोग्य जघन्य स्थिति को १ से ८ तक के अंक द्वारा बतलाया गया है। क्योंकि अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिस्थान (अन्तः कोडा

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