Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 349
________________ ३०२ पंचसंग्रह : ६. जिससे इन चारों प्रकृतियों की अनुकृष्टि सातावेदनीय के समान हो सकती है। परन्तु बीस कोडाकोडी सागरोपम से समयाधिक अठारह कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण त्रसनाम का स्थितिवन्ध ईशान तक के देवों को छोड़कर अन्य चारों गति के जीव और स्थावरनाम का ईशान तक के देव ही करते हैं । बादरत्रिक की प्रतिपक्षी सूक्ष्म त्रिक का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध अठारह कोडाकोडी सागरोपम से अधिक है ही नहीं, इसलिये इन चारों प्रकृतियों की अनुकृष्टि पृथक बताई जाती है । अर्थात् बीस कोडाकोडी सागरोपम से समयाधिक अठारह कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण स्थितिबन्ध तक पराघात की तरह और बाद में अपने-अपने जघन्य स्थितिबन्ध तक सातावेदनीय की तरह अनुकृष्टि होती है। यानि अठारह कोडाकोडी सागरोपम से इनके प्रतिपक्ष स्थावरचतुष्क के अभव्यप्रायोग्य जघन्य स्थितिबन्ध के समान स्थितिबन्ध हो वहाँ तक के सभी स्थितिस्थान आक्रान्त होते हैं और उनके सिवाय ऊपर के तथा नीचे के इस प्रकार दोनों बाजुओं के समस्त स्थितिस्थान शुद्ध होते हैं। अब उक्त भूमिका के आधार पर प्रारूपों के माध्यम से प्रकृतियों की अनुकृष्टि को स्पष्ट करते हैं। 00

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