Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 290
________________ परिशिष्ट (१) बंधनकरण प्ररूपणा अधिकार की मूलगाथाएँ नमिऊण सुयहराणं बोच्छं करणाणि बंधणाईणि । संकमकरणं बहुसो अइदेसियं उदय संते जं ॥१॥ आवरणदेससव्वक्खयेण दुहेह वीरियं होइ। अभिसंधिय अणभिसंधिय अकसाय सलेसि उभयपि ॥२।। होइ कसाइवि पढम इयरमलेसीवि जं सलेसं तु । गहण परिणामफंदणरूवं तं जोगओ तिविहं ॥३॥ जोगो विरियं थामोउच्छाहपरक्कमो तहा चेट्ठा। सत्ति सामत्थं चिय जोगस्स हवंति पज्जाया ॥४।। पन्नाए अविभागं जहन्नविरियस्स वीरियं छिन्नं । एक्केक्कस्स पएसस्स असंख लोगप्पएससमं ॥५।। सव्वप्प वीरिएहिं जीवपएसेहिं वग्गणा पढमा। बीयाइ वग्गणाओ रूवुत्तरिया असंखाओ ॥६॥ ताओ फड्डगमेगं अओपरं नत्थि रूववुड्ढीए। जाव असंखालोगा पुत्वविहाणेण तो फड्डा ॥७॥ सेढी असंखभागिय फड्डेहिं जहन्नयं हवई ठाणं । अंगुल असंखभागुत्तराई भुओ असंखाइ ।।६।। सेढि असंखियभागं गंतु गंतु हवंति दुगुणाई। फड्डाइं ठाणेसु पलियासंखसंगुणकारा ।।६।।

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