Book Title: Panchsangraha Part 06
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 295
________________ २४८ एक्haifa असंखा एगाइ जाव आवलि सपा उग्गे । असंखभागो तसा ठाणे ।। ६२ ।। तस जुत्तठाणविवरे जाव असंखा लोगा सुन्नया होंति एक्कमाईया | निरन्तरा थावरा ठाणा ||६३|| दोआइ जाव आवलिअसंखभागो निरंतर तसे हि । नाणाजीएहिं ठाणं असुन्नयं आवलि असंखं ||६४ || जवमज्झमि बहवो विसेसहीणाउ उभयओ कमसो । गंतुमसंखा लोगा अद्धद्धा उभयओ जीवा ॥ ६५ ॥ आवलिअसंखभागं तसेसु हाणीण होइ परिमाणं । हाणि दुगंतरठाणा थावरहाणी असंखगुणा || ६६ || सेठाणा । असंखगुणियाणि ॥ ६७ ॥ जवमज्झे ठाणाई असंखभागो उ हेट्ठमि होंति थोवा उवरिम्मि दुगचउरट्ठतिसमइग सेसा य असंखगुणणया कमसो । ईए पुट्ठा जिएण ठाणा भमंतेणं ॥ ६८ ॥ तत्तो विसेसअहियं जवमज्झा उवरिमाइं ठाणाई | तत्तो कंडगट्ठा तत्तोवि हु काले सव्वठाणाई || ६६ ॥ फासण कालप्पबहू जह तह जीवाण अणुभागबंधठाणा अज्झवसाया ठिठाणे ठिठाणे कसायउदया एक्के साय उदये एवं पंचसंग्रह : ६ तसेयराणं तया भणसु ठाणेसु । व एगट्ठा ।। ७० ।। असंखलोगसमा । अणुभागठाणाई || ७१ ॥ जहन्नठिइपढमबंधहेउम्मि । थोवाणुभागठाणा जा चरमाए चरमहेउ ||७२।। तत्तो विसेस अहिया गंतुमसंखालोगा पढमाहितो भवंति दुगुणाणि । आवलि असंखभागो दुगुणठाणाण संवग्गो ॥७३॥ ठिइबंधे । . असुभ गईणमेवं इयराणुक्को सम्मि सक्को सगहेऊ उ होइ एवं चिय असे ||७४||

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